महामारी और मीडिया
- संजय कुमार
कोविड महामारी ने लोगों की जहां सांसे रोकी वहीं आर्थिक नुकसान ऐसा किया कि इसकी मार खाये आम और खास लोग उबर ही नहीं पा रहे हैं। कोरोना को लेकर बात मीडिया की भूमिका और दृष्टिकोण की तो यह अहम।
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Covid Vaccination |
आज के इतिहास की सबसे घातक वैश्विक बीमारी कोरोना जो महामारी के रूप में हमारे सामने खड़ा होकर हमें अपने चंगुल में ले रखा है। कोरोना वायरस की पहचान सबसे पहले दिसंबर 2019 में चीन के वुहान में हुई थी। और आज जो तस्वीर सामने है उससे हर कोई हैरान - परेशान है। इसने इंसानों के बीच दूरी पैदा कर दी। इसकी भयाहवता इतनी डरावनी की रूह कांप जाती है। विश्व भर में लाखों लोगों की मौत के लिये कोविड19 को जिम्मेदार ठहराया गया।
कोरोना वायरस ने न केवल विश्व के सभी देशों को अप्रत्याशित झटका दिया है, बल्कि हर सरकार को बुरी तरह से झकझोर कर भी रख दिया है। लगभग सभी देशों ने पिछले साल भर के दौरान कोविड-19 से पैदा हुई चुनौतियों से निपटने की कोशिशें तो की। शुरू से ही यह साफ था कि कोई भी देश इस तरह की आपदा के लिए तैयार नहीं था। पर जब कोरोना वायरस तेजी से फैलने लगा और विश्व भर की सरकारें चुनौती से निबटने में नाकाम दिखने लगी तो उनकी आलोचना मीडिया में भी होने लगी।
एक तरफ समाचारपत्रों, रेडियो, टेलीविज़न चैनलों और वेबसाइटों पर आ रहे समाचार स्थिति की भयावहता और वास्तविकता को दिन-रात परोसते कर रहे थे तो दूसरी तरफ, सार्वजनिक स्तर पर निंदा बढ़ती जा रही थी। इससे बचने के लिये विश्व भर में लॉकडाउन का सहारा लिया गया। लॉकडाउन की तस्वीर ने विश्व भर की सरकारों को परेशान किया। सवालों के घेरे में लिया। भारत में भी स्थिति विस्फोटक दिखी। मजदूर और अन्य लोग पलायन करने लगे तो अफरा तफरी मच गई। वहीं यह भी सच है कि सरकारों ने मजदूरों और पलायन करने वालों को हर संभव मदद की कोशिशें की। लेकिन तस्वीर सहज नहीं थी। मजदूरों के पलायन की तस्वीरों को नकारा नहीं जा सकता, इसे देखते-देखते लोगों की आंखे पथराई तो वही मजदूरों की आँखों से निकले आंसू की बूंदे निकल कर बीच में ही अटक कर सूख गयी।
बात मीडिया की दृष्टिकोण की तो किसी ने गरदा उड़ाते हुए दिखाया तो किसी ने आंखे मूंद ली, लेकिन जो तसवीर थी वह ड्रॉईंग रुम तक सीमित नहीं रह पायी। भारतीय मीडिया के साथ साथ विदेशी मीडिया ने भी इस सवाल को लाल घेरे में लिया। जबकि सरकारों की ओर से रहने/खाने आदि की व्यवस्था भी की गई। लगातार अपील भी की गई। रोजगार के लिये मनरेगा को सामने लाया गया। मीडिया ने इस तस्वीर को भी सामने रखा।
ऐसा नहीं था कि मीडिया में सिर्फ आलोचना को ही जगह दी गयी। मीडिया ने कोरोना के बारे में लोगों को सरकार द्वारा किये गये उपायों की जानकारी भी दी। सरकार ने हर मीडिया माध्यम को चुना और खूब प्रचार कर लोगों को आगाह किया।
कोरोना को लेकर जहां केंद्र और राज्य सरकारें बुलेटीन जारी करती रही वही मीडिया भी सरकारी पक्ष को छापता रहा। कुछ अखबार सरकार के पक्ष में खुल कर सामने आये तो कुछ ने तंत्र व्यवस्था की पोल खोलते रहे। वैसे देखें तो मीडिया के मिशन से व्यवसाय बनने के दौरान मीडिया का तीन चेहरा है एक आलोचना की, दूसरा समर्थन और तीसरा तटस्थतता की जो कोविड काल में भी दिख रही ही। मीडिया पर कोरोना की खबरों को लेकर आरोप भी लगे। आंकड़ों, क्योरन्टीन केंद्रों की व्यवस्था और भ्रामक खबरों को लेकर मीडिया जहाँ सवालों के घेरे में कैद हुआ वहीं मीडिया ने भी तमाशे को उजागर किया, मसलन क्योरन्टीन और सामुदायिक किचेन केन्दों में वरजुअल कार्यक्रम में अच्छी व्यवस्था दिखाई गयी और कार्यक्रम के हटते ही कुव्यवस्था की पोल खुली। क्प्रशासन द्वारा कोरोना के आंकड़ों को छुपाने का भी आरोप लगा।
मीडिया पर नकारात्मक खबरों को नहीं दिखाने का दबाव का आरोप आया। कहीं कहीं पत्रकारों को कानून के दायरे में लिया गया। वैसे यह नई बात नहीं है 1780 में जब एक अंग्रेज ने भारत में पहला साप्ताहिक पत्र बंगाल गजट निकाला और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लिखा तो उसे सजा फिर इंग्लैद भेज दिया गया। कोरोना से जंग की खबर चाहे लॉकडाउन की हो या पलायन की या फिर आर्थिक मार या फिर कोरोना को हराने के लिए कोरोना योद्धाओं का मनोबल बढ़ाने के लिये ताली, थाली बचाने या फूल बरसाने की पहल का या फिर कोरोना के चेन को तोड़ने के लिए लॉकडाउन की खबर मीडिया में बनी, लेकिन आलोचना भी हुई। सबसे बड़ी बात यह हुई कि टीकाकरण की पहल सामने आई और मीडिया ने इसे खूब सवाल बनाया। सबने पीठ भी थपथपाई तो कुछ ने देरी को सवाल बनाया। वैसे मीडिया का काम सवाल बनाना ही है। लोकतंत्र पर नजर रखना बड़ी जिम्मेदारी है।
कोरोना के दूसरे चरण को देखें तो, तस्वीर बहुत ही भयावह रही। कोरोना की लहर ने जो तबाही मचाई वह किसी सुनामी से कम नहीं रही। एक ओर टीकाकरण के आने की खुशी तो दूसरी ओर कोरोना के आतंक ने जो तबाही मचाई उसे दोहराने भर से रूह कांप जाती है। लोगों की टूटती-उखड़ती सांसे और ऑक्सीजन और अस्पताल में बेड को मची अफरा - तफरी की ख़बरें मीडिया में समुंद्री लहार की तरह हिचकोले लेती रही। कोरोना के हालात ही ऐसे थे जिसने तंत्र तक को संभलने नहीं दिया। तंत्र पर स्वास्थ्य, व्यवस्था को दुरुस्त नहीं रख पाने का आरोप भी लगा। तो वहीं कोरोना से मौत के आंकड़े को छुपाने का आरोप सामने आया।
एक ओर मीडिया सरकारी आंकड़ों को छापती रही। तो वहीं कुछ अखबारों ने अपने स्रोतों से मौत के आंकड़ों को परोस, पोल खोली। टकराव भी दिखा। बदले में अखबार तंत्र के निशाने में आये। ऐसे में मीडिया और आक्रामक हुआ। कोरोना से मरने वालों के अंतिम संस्कार और कुव्यवस्था को खासकर खबरिया चैनलों ने खूब दिखा कर लोगों को चौंकाया । नदी में कोरोना से मृत्य लोगों की शव तैरने की घटना ने सबके हो होश उड़ा दिये।
कह सकते हैं कि जहां एक ओर मीडिया दबाव में दिखी तो दूसरी ओर कुछ को अपने मीडिया धर्म का पालन करते पाया गया। सवाल भी उठे1 कि मीडिया ने ऐसी तस्वीरों को दिखा कर लोगों को डराने और भयभीत करने का काम कर आप के एथिक्स को पीछे छोड़ दिया। व्यवस्था के सवाल पर अदालत सामने आई। कुछ मीडिया हाउस लगातार हमला करते रहे। राज्य सरकार भी अदालत गयी और मीडिया को मौत की लाइव कमेंट्री पर रोक लगाने की गुहार की, लेकिन अदालत, मीडिया के साथ खड़ी रही और साफ कह दी कि मीडिया को अपना काम करने दीजिए। सच है अभी भी भारत सहित पूरा विश्व कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहा है। हर देश कोरोना नियंत्रित करना चाहता है। टीकाकरण को लेकर भारत में भी मुहिम छेड़ रखी है, हालांकि सवाल उठने के बावजूद नियंत्रण की हर संभव कोशिश जारी है। कोविड को लेकर मीडिया का दृष्टिकोण भी देखने को मिला। इस बात से इंकार नहीं कि भारत कोरोना नियंत्रण के महाअभियान में जुटा हुआ है। टीकाकरण, लॉकडाउन और व्यवहार बदलाव से कोरोना के संक्रमितों के ग्राफ में निरंतर कमी आ भी रही है। साथ ही दूसरी ओर टीकाकरण की रफ्तार भी तेजी से गति पकड़ती जा रही है।
जिस प्रकार से देश को कोरोना नियंत्रण में सफलता मिल रही है इसके दूसरी ओर समाज में कोरोना और कोरोना के टीकाकरण को लेकर तरह-तरह की अफवाह, भ्रम और भ्रांतियां ने समस्या खड़ी कर दी कोई भी अफवाह/भ्रम कोरोना जैसी बीमारी से कम संक्रामक नहीं है। अफवाह भी समाज में तरह-तरह से फैलाये जा रहे हैं।मसलन एक व्यक्ति बिना किसी वैज्ञानिक प्रमाण का यह कहता पाया गया कि उसने कोरोना का टीका लिया और उसके शरीर में चुम्बकीय प्रवाह होने लगा। इसके सबूत में उसने अपने नंगे बदन पर दर्जनों चम्मच को चुम्बकीय प्रभाव से सटाकर दिखाने का भ्रम फैलाने की कोशिशि की।
हालांकि देश में किसी भी टीका लेने वाले में चुम्बकीय प्रवाह की वैज्ञानिक पुष्टि नहीं हुई है। लेक़िन हद तो यह कि इस अंधविश्वास को मीडिया ने भी जम कर फैलाया। याद कीजिये पत्थर को दूध पिलाने की घटना को जब राष्ट्रीय मीडिया क्या क्षेत्रीय मीडिया ने उस अंधविश्वास को ऐसे फैलाया था जैसे कोई उसने पत्थर को जिन्दा करने और उनके द्वारा दूध पी लेने की घटना का आविष्कारक हो। हालांकि पूरा खेल बाजार का था उस वक़्त मीडिया ने खूब टीआरपी बटोरी थी।
धर्म सम्प्रदाय का सवाल भी सामने आया। अच्छी बात यह रही कि धर्म सम्प्रदाय के गुरुओं ने टीकाकरण का साथ दिया और अपील भी की लोग टीका लें। मीडिया ने इसे प्रथमिकता से जगह दी। मीडिया अपना दृष्टिकोण को सिर्फ अपने टीआरपी के लिये सुरक्षित रखता है।बिना जांच पड़ताल के खबर परोस देता है। इस बार कोरोना महामारी में भी टीकाकरण को लेकर ऐसी खबरें परोसी जा रही है जिससे टीकाकरण पर ही असर पड़ना स्वभाविक है।
हालांकि ऐसी बात नहीं है कि सभी मीडिया हाउस भ्रामक और अफवाह फैलाने वाली खबरों को परोस रहे हैं। सरकार द्वारा टीकाकरण और कोरोना से बचाव को लेकर चलाए जा रहे हैं जागरूकता कार्यक्रम को भी अहमियत दे रहे हैं।तो टीकाकरण के साथ साथ कोरोना से बचाव के लिये मास्क लगाने और दो गज दूरी के लिए लोगों को जागरूक कर रहे हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि खबरों को शब्दों में पिरोने वाला व्यक्ति पढ़ा लिखा होता है लेकिन जब वह अफवाह और भ्रम को परोसने लगे तो सवाल के घेरे में आएगा ही।
अगर देखा जाए तो सही मायने में अगर मीडिया हाउस खबरों की पड़ताल कर अफवाह और भ्रामक खबरों को अपने मीडिया हाउस में जगह नहीं दे तो उसके सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा। लेकिन जब आरोप लगता है तो कि मसालेदार और चटपटी खबर को जनता की मांग बता देता है।
सच से मुंह मोड़ लेता है और उसके नकारात्मक प्रभाव से अपने को दूर कर लेता है। वही यह भी देखा जाता है कि दबाव में आकर कई जन हित की खबरों से मुंह मोड़ लेता है। कई घटनाएं हैं। मीडिया में सच और झूठी खबरों की लहर के बीच देखा गया कि सरकारों जहां कोरोना से असत्य जुड़ी खबरों का फैक्ट चेक कर बताने लगी कि खबर भ्रामक है। तो वहीं मीडिया हाउस भी फैक्ट चेक करने लगी। टीकाकरण को लेकर भी मीडिया सामने है। लगने और नहीं लगाने। कुप्रभाव और गड़बड़ी यों को लेकर खूब खबरे बनी। ऐसे में कोरोना महामारी पर नियंत्रण के लिए सरकार को दो मोर्चों पर काम करना पड़ रहा है।
इसमें स्वास्थ्य सेवाओं और संरचनाओं के विकास की दिशा में काम किया जा रहा है बल्कि समाज में फैलने वाले हर प्रकार के अफवाह और भ्रांति को दूर करने की कोशिश की जा रही है। भ्रम को रोकने के लिए सरकार हर जागरुक नागरिक से मीडिया के जरिये अपील भी कर रही है। टीकाकरण का सवाल अदालत में भी आया। आंकड़ों को लेकर खूब सवाल के गोले छूटे। देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या में कमी आने के बाद अलग-अलग राज्यों द्वारा अनलॉक के तहत गतिविधियां खोली जा रही है। इसका कतई मतलब नहीं है कि कोरोना का खतरा समाप्त हो गया है। सरकार का इस बात पर जोर है कि कोविड-19 के खिलाफ पांच सूत्री रणनीति को अपनाना होगा। इसमें कोविड से बचाव के लिए उसके अनुरूप अपने व्यवहार को बनाये रखना है।
सही तरीके से नाक व मुंह ढ़का हुआ मास्क पहनना, हाथों को नियमित अंतराल के बाद साबून- पानी से धोते रहना है या सैनेटाइजर का प्रयोग करना है. दो गज दूरी का पालन कर शारीरिक दूरी को अपनाना हैं। इसके अलावा सरकार का जोर कोरोना की टेस्टिंग की संख्या को बढ़ाने को लेकर की जाती रही है। इसके साथ ही जांच में पॉजिटिव पाये जाने पर उस संक्रमित के संपर्क में आने वालों की कंट्रेक्ट ट्रेसिंग करना और संक्रमित होने पर ट्रीटमेंट की व्यवस्था किया जा रहा है। इन तमाम पहल को मीडिया में जगह मिली। इस बात से इंकार नहीं कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई में टीकाकरण और सही जानकारी मजबूत हथियार हैं। अगर किसी व्यक्ति में कोरोना जैसा लक्षण दिखे तो अविलंब जांच करानी चाहिए।
पॉजिटिव पाये जाने पर अविलंब अस्पताल या होम आइसोलेशन में रखा जाना चाहिए। संक्रमिण के चेन को तोड़ना भी आवश्यक है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अगर एक कोरोना संक्रमित व्यक्ति अपना समय पर जांच और इलाज नहीं कराता है तो वह एक महीने में वह चार सौ से ज्यादा लोगों में संक्रमण फैला सकता है। संक्रमित व्यक्ति के साथ शारीरिक दूरी का पालन किया जाये तो संक्रमण फैलाने की क्षमता न के बराबर हो जाती है। इन सूचना को बार बार मीडिया में देना चाहिए। सरकारें इन सूचनाओं को विज्ञापन के एवज में मीडिया में देती रही है।कोरोना नियंत्रण के लिए भारत सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर काम किया जा रहा है।
भारत में कोरोना नियंत्रण की कितनी बड़ी चुनौतियां हैं। देश की आबादी करीब एक अरब 30 करोड़ है. इस देश में 22 भाषाएं बोली जाती है।भिन्न-भिन्न भाषा बोलने वालों के बीच कोरोना का मैसेज पहुंचाने में मीडिया और समाज के एक-एक जिम्मेदार नागरिक का काम है। देश में कोरोना नियंत्रण को देखते हुए देश में स्वास्थ्य संरचना में निरंतर विकास किया गया। इसके लिए देश में करीब 18 लाख आइसोलेशन बेड बनाये गये।
आइसीयू बेड की संख्या बढ़ाकर एक लाख की गयी। भारत में पीपीई किट निर्माण में शून्य की स्थिति में था वर्तमान में देश के अंदर एक हजार से अधिक पीपीई किट निर्माता कंपनियां उत्पादन का काम कर रही हैं। कोरोना नियंत्रण को लेकर रणनीति तैयार होती रही। स्थिति यह है कि अभी तक कोरोना को लेकर 127 प्रकार की गाइडलाइन जारी की जा चुकी है। कोरोना नियंत्रण में इनफॉर्मेशन तकनीकी का प्रयोग किया जा रहा है। मैनपावर तैयार करने की दिशा में 16 मिलियन लोगों को प्रशिक्षित किया गया है। सरकार द्वारा कोरोना नियंत्रण की दिशा में मीडिया सहित सभी सेक्टर के लोगों का सहयोग ले रही है।
इसमें निजी क्षेत्र के चिकित्सकों के सहयोग के लिए इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के साथ काम किया जा रहा है। देश में 90 हजार स्वयंसेवी संगठनों के साथ बात की जा रही है और उनका सहयोग लिया जा रहा है। पंचायतीराज संस्थाओं और महिला स्वयं सेवी संगठनों का सहयोग लिया जा रहा है। कोरोना टीकाकरण को लेकर अक्सर कई प्रकार के सवाल पूछे जाते हैं। लोगों में भ्रम है कि टीका लेने के बाद किसी तरह का कुप्रभाव पड़ताहै।
सच तो यह है कि अभी तक जिन लोगों को टीका दिया जाता है उनमें शरीर में हल्का दर्द होने, हल्की बुखार होने की शिकायत मिलती है इसको लेकर टीकाकरण के बाद उनको आधे घंटे तक टीकाकेंद्र पर ऑब्जर्वेशन के लिए रखा जाता है। कोरोना संकट के दौर में मीडिया की भूमिका सराहनीय रही है।
कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के वक्त में सूचनाओं के प्रसारण, विश्लेषण और आयामों को लेकर जिस तरह की संजीदा भूमिका मीडिया ने अदा की है, वह अत्यंत ही प्रशंसनीय व सराहनीय है। मार्च माह से ही इस वैश्विक महामारी के दौरान मीडिया ने सूचना, शिक्षा ,जागरूकता के मामले में समाज के अहम और विश्वसनीय साझेदार की भूमिका निभाई है। ताकि देश के लोगों को इस संकट से उबरने में जागरूक किया जा सके और वे खुद को कोरोना संक्रमण से बचा सके। कोरोना महामारी के वक्त में लोगों को मास्क पहनने, शारीरिक दूरी का पालन करने, हाथों को लगातार धोने, स्वस्थ जीवनशैली अपनाने और नियमित व्यायाम को अपने जीवन का हिस्सा बनाने के लिए प्रोत्साहित करने की दिशा में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका प्रशंसनीय है। कोरोना योद्धा के रूप में इन सभी ने अपना बहुत योगदान समाज को दिया। संपादक, पत्रकार अपनी संपूर्ण टीम के साथ अपनी कलम से समाज को इस बीमारी से बचाने हेतु विचारों व भावों से लड़ते रहे।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में टेलीविजन, रेडियो, इंटरनेट पर भी कोरोना का कहर दिखता रहा। मजदूरों के पलायन से लेकर जलती चिताएं मन को व्यथित कर गईं। डॉक्टर्स, पैरामेडिकल स्टाफ, पुलिस विभाग, जल आपूर्ति विभाग, विद्युत विभाग अपने कार्यों में तन-मन से लगे रहे बल्कि अभी भी हैं। जहां एक ओर कोरोना एक साल से ज्यादा समय से लोगों को निगलता आ रहा है। पहले चरण को निपटाने के बाद हम निश्चित हो गए लेकिन मन में एक आशा थी कि हम जल्द इस बुरे दौर से निकल कर पुनः उसी अच्छे वक्त में पहुंच जाएंगे।
आज एक साल के बाद भी वक्त भयावह से होता हुआ बदतर होता जा रहा है। हम सभी को कोस रहे हैं और यह कोसना हमारी पुरानी आदत है। हम जानते हैं कि इस तरह से हम कछुए की तरह अपने में ही छिप जाएंगे। कोई प्रिंट मीडिया, तो कोई सोशल मीडिया पर आरोप-प्रत्यारोप लगाता है। ठीक है बोलने की आजादी हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, परंतु कभी-कभी यही बड़बोलापन सभी के लिए नुकसानदायक भी बन जाता है। मान सकते हैं कुछ टीवी चैनल, कुछ अखबार बिके होते हैं, लेकिन सभी को एक लाठी से हांकना ठीक नहीं है। सोशल मीडिया की तरह प्रिंट मीडिया कभी भी जल्दबाजी में अपना पक्ष नहीं रखता। वह तथ्यों के आधार पर अपनी बात रखता है।
कोरोना के इस बुरे दौर में भी प्रिंट मीडिया ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लोगों को सच से अवगत करवाया और उन्हें इस महामारी से सचेत भी किया। वही खबरें पाठकों के समक्ष थीं जो सच थीं। चुनावों और परीक्षाओं का दौर भी आया, मेले और त्योहारों का दौर आया, शादियों, मातमों का दौर भी संग आया। सरकारें कोई भी हों, अगर लॉकडाउन लगता है तब भी कटघरे में होती हैं, न लगाएं तब भी कटघरे में होती हैं।
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वहीं दृष्टिकोण को लेकर भी सवाल उठे। भारतीय मीडिया जो पहले मिशन थी और आज प्रोफेशन हो गयी है। यानी दोनों पक्ष के साथ खड़ी है। मसला कोरोना का हो या कोई और मीडिया बंटी दिखती है। लेकिन जो तस्वीर है, उसे धुंधली बनाने के प्रयास को छोड़ना होगा, ताकि चौथे स्तंभ का जो दायित्व है वह पूरा हो सके।
लेखक जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार हैं
Presentation by anj news media
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